"अपना गम ले के कहीं और न जाया जाए,
घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाए,
घर से दूर है मस्जिद,
तो चल यूँ करले,
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए,
बाग़ में जाने के आदाब हुआ करते हैं,
किसी तितली को न फूलों से उड़ाया जाए..."
- निदा फ़ज़्ली
बिस्मिल्लाह! क्या सोच है..
यही मेरी प्रेरणा का स्त्रोत है..
Wednesday, June 25, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment