Saturday, September 19, 2009

गीता दत्त


यह नाम सुनते ही मन में एक तस्वीर उभरती है - सेपिया टोन में रंगी एक तस्वीर - एक साधारण पर आकर्षक चेहरा, नाक में एक छोटी लौंग, माथे पर एक मध्यम आकार की बिंदी और कानों में झुमके।

पर इस चेहरे में सबसे आकर्षक चीज़ है - होठों पर एक अधखिली मुस्कान।

वो मुस्कान - जो गीता दत्त नामक व्यक्तित्व का जीवन समावेश है।


करीब २ साल पहले, रात को लेटे हुए AIR FM Gold सुन रही थी। उन्ही दिनों मेरी दिलचस्पी पुराने गीतों और फिल्मों की तरफ बढ़नी शुरू हुई थी. रेडियो सुनते सुनते पता नहीं क्या सोच रही थी कि एक गीत बजने लगा - "तदबीर से बिगड़ी हुई तकदीर बना ले..."

और उस एक पल ने मेरा सारा ध्यान उस आवाज़ कि ओर ला खड़ा किया - एक अनजानी आवाज़।

अभी तक पुराने दौर कि गायिकाओं के रूप में सिर्फ आशा - लता की आवाज़ से परिचित थी।पर यह नयी आवाज़ किसकी है? वह गीत ख़त्म हो गया पर वह आवाज़ मन में बैठ गयी।


Google पर ढूँढने पर उस गीत के बारे में जानकारी मिली:

फिल्म - बाज़ी

संगीत - सचिन देव बर्मन
गायिका - गीता दत्त

और अगले ही पल Google Image पर यह नाम टाइप करके enter दबा दिया।

कौन है इस अनुपम, अद्वितीय आवाज़ कि मालिक -गीता दत्त?

और सबसे पहली तस्वीर वही - सेपिया टोन में रंगी हुई - अधखिली मुस्कान के साथ - गीता दत्त।

तब से अब तक, मेरे लिए गीताजी कि पहचान बन गयी है वह तस्वीर और वह गीत - "तदबीर से..."


1950 की बात है - रिकॉर्डिंग स्टूडियो में इसी गीत की रिकॉर्डिंग चल रही थी। फिल्म के निर्देशक भी वहां उपस्थित थे - गुरु दत्त। गीत की रिकॉर्डिंग तो ख़त्म हो गयी, पर वह आवाज़ गुरु दत्त के मन में बैठ गयी।


आज पचास और साठ का दशक हिंदी सिनेमा का 'स्वर्णिम युग' कहलाता है और जो नाम उस युग की पहचान के रूप में सामने आते हैं, उनमें से मेरा प्रिय एक नाम है - गुरु दत्त!

आज भी हिंदी सिनेमा में गुरु दत्त का स्वर्णिम स्थान है। उनकी 'प्यासा', 'कागज़ के फूल' और 'साहिब बीबी और गुलाम' कालजयी कृतियाँ घोषित हो चुकी हैं।

पर गीता दत्त?

इन कालजयी कृतियों में महत्त्वपूर्ण योगदान के बाद भी, यह नाम समय की लहरों में डूब-सा गया है.

यह दीगर की बात है कि 1950 से पहले नज़ारा इससे ठीक उल्टा था। गीता दत्त - हिंदी और बंगला संगीत में यह नाम स्थापित हो चुका था। और गुरु दत्त - गुमनामी से निकल अपनी पहचान तलाशता एक नाम।


और दिलचस्प बात यह है कि मैं इनमें से जब भी कोई एक नाम सोचती हूँ, तो दूसरा नाम स्वतः ही जेहन में दौड़ा चला आता है।' गुरु - गीता' - मेरे लिए ये एक ही नाम हैं - एक दुसरे के पूरक।


बहरहाल, आज भी जब कभी हम रेडियो पर यदा कदा "ऐ दिल मुझे बता दे...", "मेरा नाम चिन चिन चू...", "बाबूजी धीरे चलना..." या "ठंडी हवा काली घटा..." सुनते हैं, तो पैर अपने आप ही थिरक उठते हैं और हम खुद को गुनगुनाने से रोक नहीं पाते।पर वह आवाज़ हम में से कितने लोग जानते हैं - पहचानते हैं?


और ये तो सिर्फ कुछ चुनिन्दा गीत हैं जो रेडियो पर सुनाई दे जाते हैं. गीता दत्त के गीतों का संसार इनसे कई गुना बड़ा है. फिर भी वह संसार आज गुमनामी की ओर अग्रसर है.
जहाँ आज भी आशा - लता जी के कई पुराने गीत रेडियो, टी।वी., यहाँ तक कि reality shows में भी गाये जाते हैं - वहां से गीताजी का नाम क्यों नदारद है?

जबकि लता और गीता - ये दो ही नाम ऐसे थे जिन्होंने 1950-60 के ज्यादातर गीतों को अपनी आवाज़ दी है। आशा जी को तो इन दो महारथियों के बीच अपनी जगह बनाने में काफी वक़्त लग गया था। और अगर इस गुमनामी कि वजह - गीताजी को गुज़रे सालों हो गए हैं - है, तो फिर क्यों आज भी रफ़ी साहब और किशोरदा संगीत प्रेमियों के मन में जीवित हैं?


आज भी जब कहीं पुराने गीतों की महफिल सजती है, तो मैं तत्परता से गीताजी का नाम ढूंढती हूँ। किसी अखबार में पुराने दौर के संगीत के ऊपर लेख पढ़ती हूँ, तो उसमें गीताजी को खोजती हूँ।orkut या facebook पर पुराने गीतों की communities में गीता दत्त का ज़िक्र तलाशती हूँ। पर 100 में से 99 बार निराशा ही हाथ लगती है।


मुझे यह सोचकर सच में बेहद दुःख होता है की लता, आशा, रफ़ी, किशोर, मुकेश और मन्ना डे की पंक्ति से गीता दत्त जी का नाम क्यों लापता हो गया? कैसे लापता हो गया?

मुझे इन प्रश्नों का उत्तर ढूंढे से भी नहीं मिल पा रहा है।


जब कभी 'बादबान' का "कैसे कोई जीए ज़हर है ज़िन्दगी..." सुनती हूँ तो मन भर आता है।

'अनुभव' का "मुझे जान न कहो.." मेरी पलकें भिगा जाता है।

'साहिब बीबी और गुलाम' का "कोई दूर से आवाज़ दे.." सुनकर रूह काँप उठती है।

'कागज़ के फूल' का "वक़्त ने किया क्या हसीं सितम..." सुनकर गला रुंध जाया है।

और 'दो भाई' का "खो के हमको पा न सकोगे, होंगे जहाँ हम आ न सकोगे, तढ़पोगे, फरियाद करोग, एक दिन हमको याद करोगे..." मन में एक टीस जगा जाता है...

कि सच में हमने गीताजी को खो दिया है। चाहकर भी उन्हें वापस नहीं ला सकते। केवल उनकी आवाज़ के माध्यम से उन्हें याद कर सकते हैं।

और लोगों से फरियाद कर सकते हैं कि कुछ तो करके गीताजी कि याद बनाये रखें।


यह एह प्रशंसक का नम्र निवेदन है.

7 comments:

Parag said...

Excellent article Punya. Please keep writing articles on our beloved Geeta ji.

Punya said...

thnks! i write articles on those topics/ ppl.. who really touch me.. n Geeta ji is one such prsn! :)

Anonymous said...

नमस्कार मैं भी आप की तरह एक कायस्थ हूँ.. और आजीवन मैंने ये महसूस किया है कि कला से सब से बड़े प्रेमी कायस्थ ही होते हैं... और आपकी यह पोस्ट पढ़ के ये बात आज तय हो गयी...

shobhita dutt said...

dude, i finally found u..hw do i follow u???my blog is shobhitame@blogspot.com... plz plz mera bhi dekhna, okieeee

Bollyviewer said...

"गीता दत्त - हिंदी और बंगला संगीत में यह नाम स्थापित हो चुका था। "

शादी से पहले वह गीता दत्त नहीं गीता राय थी| और मेरे ख़याल से गीता दत्त का नाम समय की लहरों में खोया नहीं है - कम से कम बंगाली संगीत में तो नहीं| हिंदी संगीत में भी, गीता दत्त के गाने काफी लोकप्रिय हैं| किसी भी बड़े music store के CD collection को देखिये तो आप को गीता जी के collections ज़रूर मिलेंगे| और इन्टरनेट पे तो गीता जी के बहुत से अनुयायी हैं - यह देखिये (Geeta Dutt Fan's blog)|

वह क्यों किशोरे-रफ़ी और लता-आशा की तरह लोकप्रिय नहीं है - शायद इसलिए की गुरु दत्त से शादी के बाद उनकी आवाज़ काफी दर्द भरी हो गयी थी! Late 50s और 60s में उनके सबसे जाने-माने गीत या तो दर्द भरे हैं या गंभीर किस्म के गाने हैं| आजकल सबसे ज्यादा लोकप्रिय हल्के-फुल्के, मजेदार गाने हैं, इसलिए शायद गीता जी को सिर्फ "मेरा नाम चिन चिन चू" के लिए याद किया जाता है! मेरे आसपास के लोगों में तो रफ़ी भी ज्यादा लोकप्रिय नहीं हैं - सबको किशोर के तमाशे ही पसंद आते हैं|

Gaurav Rhyme said...

Thanks Punya for writing so passionately about Geeta Dutt....!! Thanks a lot..!! She was mesmerizing in Guru Dutt movies, CID songs shook the hell out of me...!! Keep posting classicz !

Gaurav Rhyme said...

परन्तु मै Bollyviewer जी से बिलकुल सहमत नहीं हूँ सिर्फ एक वजह से | एक महारथी की प्रशंसा के लिए वोह दुसरे महारथी पर व्यंग कर रहे है | किशोर कुमार तमाशे नहीं, गीतों में अपनी जान डालते थे , कभी उनके recordings विडियो देखना, आपकी आँखें उनकी मेहनत देख नम ना हो जाये नामुमकिन है | हाँ वोह लोकप्रिय थे , है , और रहेंगे , अनंत काल तक | ओर मै सिर्फ किशोर नही रफ़ी का भी बहुत बड़ा फेन हूँ, पर उन दोनों का comparison करना मै उन दोनों की शान के खिलाफ समझता हूँ |